भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 द्वारा किये गए परिवर्तन
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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 द्वारा किये गए परिवर्तन

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 05-Jul-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में कई ऐसे परिवर्तन किये गए हैं जो स्थापित न्यायिक पूर्वनिर्णय के विपरीत हैं तथा इसलिये विधिक व्यवस्था में अस्पष्टता उत्पन्न करेंगे।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने के संबंध में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में क्या परिवर्तन किये गए हैं?

  • BNSS की धारा 173 में संज्ञेय अपराधों के मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का प्रावधान है।
  • BNSS की धारा 173 (3) में कहा गया है कि तीन वर्ष या उससे अधिक लेकिन सात वर्ष से कम की सज़ा वाले संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर, पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी अपराध की प्रकृति एवं गंभीरता को देखते हुए पुलिस उपाधीक्षक के अधीनस्थ अधिकारी की पूर्व अनुमति से:
  • 14 दिनों की अवधि के अंदर मामले को आगे बढ़ाने के लिये प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है या नहीं, यह पता लगाने के लिये प्रारंभिक जाँच करने के लिये आगे बढ़ना होगा।
  • जहाँ प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है, वहाँ जाँच के साथ आगे बढ़ें।
  • ध्यान दें कि उपरोक्त प्रावधान ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) के मामले में उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2013 के महत्त्वपूर्ण निर्णय के विरुद्ध है।
  • उपर्युक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि संज्ञेय मामले में सूचना प्राप्त होने पर बिना विलंब के FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
  • निर्णय में ही कुछ श्रेणियों का उल्लेख किया गया था, जिनमें प्रारंभिक जाँच की अनुमति दी गई थी। ये श्रेणियाँ थीं:
    • वैवाहिक विवाद
    • वाणिज्यिक अपराध
    • चिकित्सा लापरवाही के मामले
    • भ्रष्टाचार के मामले
    • ऐसे मामले जहाँ आपराधिक अभियोजन प्रारंभ करने में असामान्य विलंब होता है।
  • इस प्रकार, जबकि पुरानी व्यवस्था अर्थात् दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अधीन प्रारंभिक जाँच केवल विशिष्ट श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले मामलों में ही अनुमति दी जाती थी, BNSS ने प्रारंभिक जाँच की परिधि का विस्तार किया है तथा इसके अंतर्गत, ऐसे सभी अपराधों के लिये प्रारंभिक जाँच की जा सकती है जिनमें सज़ा 3 वर्ष से अधिक लेकिन 7 वर्ष से कम है।

शिकायत मामलों में अभियुक्त की सुनवाई के अधिकार के संबंध में क्या परिवर्तन किये गए हैं?

  • CrPC की धारा 200 में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट शिकायतकर्त्ता एवं साक्षियों की शपथ पर जाँच करने के बाद शिकायत पर अपराध का संज्ञान लेगा।
  • एक बार संज्ञान लेने के बाद आरोपी को औपचारिक रूप से बुलाया जाता है।
  • BNSS की धारा 223 में उपरोक्त प्रावधान यथावत् रखा गया है, हालाँकि इस प्रावधान में एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा गया है।
    • इस प्रावधान में यह वर्णन है कि अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिये बिना मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान नहीं लिया जाएगा।
  • उड़ीसा राज्य बनाम देबेन्द्रनाथ पाढ़ी (2004) के मामले में न्यायालय ने माना है कि अभियुक्त को विचारण के आरोप तय करने के चरण के दौरान दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है।
    • न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीश आरोप निर्धारण के चरण में “मिनी ट्रायल” से बचने के लिये केवल अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर ही विचार कर सकते हैं।

लोक सेवक के विरुद्ध शिकायत के मामले में संज्ञान के संबंध में नए प्रावधान क्या हैं?

  • BNSS की धारा 223(2) में प्रावधान है कि:
  • मजिस्ट्रेट किसी लोक सेवक के विरुद्ध किसी अपराध के लिये की गई शिकायत पर संज्ञान नहीं लेगा, जो उसके आधिकारिक कृत्यों या कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान किया गया हो, जब तक कि:
    • ऐसे लोक सेवक को उस स्थिति के बारे में दावा करने का अवसर दिया जाता है जिसके कारण ऐसी कथित घटना घटी; तथा
    • ऐसे लोक सेवक से वरिष्ठ अधिकारी से घटना के तथ्यों एवं परिस्थितियों से संबंधित रिपोर्ट प्राप्त की जाती है।
  • CrPC में ऐसी कोई व्यापक छूट नहीं है, यह केवल तभी लोक सेवक की जाँच से छूट प्रदान करता है जब शिकायतकर्त्ता लोक सेवक हो तथा वह अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन कर रहा हो।

निष्कर्ष:

शिकायत पर संज्ञान लेने से पहले प्रारंभिक जाँच एवं आरोपी की सुनवाई के अधिकार का प्रावधान BNSS द्वारा प्रस्तुत किया गया है। ये प्रावधान CrPC में मौजूद नहीं थे। प्रथम दृष्टया, ये प्रावधान स्थापित न्यायिक पूर्वनिर्णयों के विपरीत हैं। यह देखना मनोरंजक होगा कि नए संविधियाँ हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को कैसे प्रभावित करेंगी।